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कविता

भारत-भारती

बोधिसत्व


उधड़ी पुरानी चटाई और एक
टाट बिछाकर,
छोटे बच्चे को
औधें मुँह भूमि पर लिटा कर।

मटमैले फटे आँचल को
उस पर फैला कर
खाली कटोरे सा पिचका पेट
दिखा कर।

मरियल कलुष मुख को कुछ और मलिन
बना कर
माँगने की कोशिश में बार-बार
रिरिया कर।

फटकार के साथ कुछ न कुछ
पाकर
बरबस दाँत चियारती है
फिर धरती में मुँह छिपाकर पड़े बच्चे को
आरत निहारती है ।

यह किस का भरत है
किस का भारत
और किस की यह भारती है।


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